अमर आनंद वरिष्ठ पत्रकार
2024 की लड़ाई के केंद्र में एक बार फिर से नरेंद्र मोदी ही होंगे और मोदी इतना भरपूर होंगे कि काम, नाम, इंतजाम और तामझाम में सिर्फ मोदी ही मोदी नजर आएंगे। विपक्ष के इंडिया के खिलाफ बीजेपी की एनडीए नाम की कवायद के केंद्र में सिर्फ मोदी ही है। बाकी सब सेनानी है या फिर महज ताली बजाने और हां में हां मिलाने की भूमिका में। वर्षों बाद राजधानी दिल्ली के अशोका होटल में हुई एनडीए की मीटिंग में सिर्फ प्रधानमंत्री को सुना, समझा और समझाया गया। उन्हें सुनने और सुनकर ताली बजाने वाले राजभर , कुशवाहा और मांझी जैसे कुछ नेता ऐसे भी थे जो मोदी को चुनावी सभाओं में जी भरकर कोसते और गली देते रहे है और लालच या मजबूरी में मोदी मार्ग के राही बने है। इस आयोजन मे उम्मीदों के कुछ चिराग मोदी का सान्निध्य पाकर रोशन होते नजर आए।
ये नेता भारत के नक्शे पर राज्यों में तेजी से घट रही बीजेपी के लिए 24 में कितने तारणहार होंगे, इसका पता चलना अभी बाकी है। हालांकि जाहिर तौर एनडीए का पर नरेंद्र मोदी एक वैश्विक नेता के रूप में एक मजबूत स्तंभ के रूप में जाने जाते है जो आर्थिक के साथ साथ मणिपुर और महिला खिलाड़ियों जैसे कुछ ज्वलंत मुद्दों पर खामोशी के लिए विपक्ष और आलोचकों के निशाने पर रहते हैं। दक्षिण से मोदी नाम के प्रश्न का उत्तर तलाश करने की कवायद में भारत के नक्शे में तेजी से अपनी ताकत बढ़ाने में इंडिया नाम से इकट्ठा हुए 26 पार्टियों के पास अपना कोई चेहरा नहीं , यह मोदी की सबसे बड़ी ताकत है। मोदी के सामने जिस चेहरे को आगे किया जाएगा उसकी तुलना मोदी से करते हुए विपक्ष के पूरे अभियान को पंक्चर करने की बीजेपी की रणनीति रहेगी, इसलिए विपक्ष चेहरे को लेकर फिलहाल कोई काम नहीं कर रहा है बल्कि मोदी को हराने के लिए रणनीति बना रहा है और इसके लिए मोदी की शख्सियत पर बात करने की बजाय जनता के मुद्दों पर जोर दिया जा रहा है। विपक्ष की सुनियोजित बैठक के जवाब में दिल्ली में एनडीए की जल्दबाजी में बुलाई गई बैठक का अंतर को सबको समझ में आया लेकिन एनडीए की बैठक की सबसे खास बात ये थी कि इसमें 38 पार्टियां इकट्ठी कर ली गई जो विपक्ष की 26 पार्टियों के जवाब में 12 ज्यादा है। यानी 12 ज्यादा पार्टियों के साथ 24 में विपक्ष की चुनौती का मुकाबला करेंगे नरेंद्र मोदी। यह अलग बात है कि एनडीए के 38 में से 24 के पास फिलहाल अपना कोई सांसद नहीं है। एक बात और है कि अब मोदी खुद को या उनके समर्थक उन्हें एक अकेला शेर नहीं कह पाएंगे। हां मोदी राहुल के इंडिया के जवाब में एनडीए की नई परिभाषा समझते हुए भारत के प्रति अपने समर्पण की दुहाई देते हुए वोट मांगेंगे और साथ में पहले की तरह यह भी कहेंगे कि विपक्ष मुझे गाली देता है इसलिए भी वोट दो।
2024 तक देश दस साल तक मोदी को देख, सुन और समझ चुका होगा। उनके फायदे और नुकसान भी जनता जान चुकी है। हम उस दौर में हैं जहां मोदी का मतलब भारत माना जाने लगा है। हम उस दौर में है जहां मुख्य चुनावी मुद्दा मोदी ही होंगे, इससे किसी को इंकार नहीं होना चाहिए लेकिन मोदी तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री कैसे बनेंगे यह एक बड़ा प्रश्न है। बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें दिलाने वाले प्रदेश यूपी से इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की कोशिश में जुटी बीजेपी ने ऐसे ऐसे लोगों को फिर से अपने आप से जोड़ लिया है जो मोदी और योगी को कांग्रेस से भी ज्यादा तीखी और चुभने वाली गालियां देते रहे है। इस बार जब उत्तर प्रदेश ने मोदी खुद को दी जाने वाली कांग्रेस की गालियों का हवाला देकर वोट मांगेगे तो मुमकिन है कि अखिलेश के साथ रहकर मोदी और योगी को गाली देने वाले राजभर भी मंच पर उनके साथ मौजूद हों। ठीक उसी तरह जब विपक्ष के भ्रष्टाचार की बात कहकर मोदी महाराष्ट्र में वोट मांगेगे तो वो अजीत पवार उनके बगल में होंगे जिनके भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए खुद मोदी ने मध्य प्रदेश में पार्टी कार्यकतार्ओं को संबोधित करते हुए उन्हें सजा तक पहुंचाने की धमकी दी थी लेकिन हुआ इसका उलटा। अजीत पवार बीजेपी के साथ पावर में आकर इनाम के हकदार हो गए। पार्टी नेताओं के बेटों के अलावा पासवान, राजभर और मांझी के बेटे को प्रमोट करने वाली बीजेपी अब राजनीति में वंशवाद के विरोध की बात किस मुंह से करेगी। वैचारिक दृढ़ता के लिए जाने और प्रचारित किए जाने वाले मोदी का प्रभामंडल ऐसे राजनीतिक प्रसंगों की वजह से क्षरण होता है और मोदी जी के प्रशंसक तक कह उठते है मोदी जी आप तो ऐसे न थे। बीजेपी वाशिंग पाउडर धूलकर कई दागदार नेता मोदी के समर्थन में वोट मांगते रहे है और 2024 में भी मांगेगे, जो अतीत जांच एजेंसियों के रडार पर रहे है। 2024 की लड़ाई में बीजेपी का बल निश्चय ही उत्तर प्रदेश इसके मुख्यमंत्री योगी है लेकिन मोदी के खास अमित शाह की रणनीति के जरिए या योगी की घेराबंदी करने की कोशिश होती है या फिर सूबे में पार्टी का चेहरा होने के बावजूद उनसे इस बारे में मशविरा नहीं किया जाता। 2022 की चुनावी सभाओं में योगी के खिलाफ कड़वे और अपमानजनक बोल बोलने वाले राजभर की एनडीए में फिर से इंट्री को ऐसा ही माना जा रहा है जिस पर योगी ने प्रतिक्रिया देना भी उचित नहीं समझा।
जहां तक चालीस सीटों वाले बिहार की बात है तो वहां पर सत्ता से हटने के बाद बीजेपी की कैसी हालत कर दी गई है यह किसी से छुपा नहीं है। तमाम बड़े नेताओं की मौजूदगी के बावजूद पार्टी को एक साथ लेकर का एक चेहरा तक तय नहीं हो पाया है। पार्टी जब तक सम्राट जैसे सेकंडलाइनर नेताओं को चेहरा बनाने कि हैसियत तक पहुंचाएगी तब तक मोदी और शाह के अप्रिय कुछ बड़े नेता बड़ा नुकसान कर चुके होंगे। बिहार हो या यूपी जहां तक बात जनता की है तो सौ बात की एक बात तो यह है इस बार चुनावी सभाओं बातों से पेट नहीं भरने वाला बल्कि पेट भरने वाली बातों पर ज्यादा जोर रहेगा।