अमर आनंद वरिष्ठ टीवी पत्रकार
लखनऊ। 2025 में 75 साल पूरी करने जा रहे नरेंद्र मोदी देश की 140 करोड़ आबादी को कई तरह की गारंटी देते हुए चुनावी सभाओं में देखे और सुने जा रहे हैं लेकिन मोदी क्या खुद इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि अगर उनकी जीत हुई तो वह पूरे कार्यकाल तक पीएम बने रहेंगे और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाएंगे ? पार्टी के अंदर और पार्टी से बाहर निकल कर जो चर्चा चौक और चौराहों पर पहुंच चुकी थी उस चर्चा को जेल से बाहर आए अरविंद केजरीवाल ने अपने भाषण के जरिए जन – जन तक पहुंचा दिया है।
केजरीवाल के मुताबिक 2024 का लोक सभा चुनाव में एक तरह से अमित शाह को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने की बीजेपी की योजना भी है। कहा जा रहा है कि नतेंद्र मोदी आगर जीत कर पीएम बनते हैं तो खुद की बनाई परंपरा के मुताबिक 17 सितंबर 2025 में रिटायर हो जाएंगे और अपनी जगह अपने पुराने सहयोगी मोटा भाई अमित शाह को स्थापित करेंगे। केजरीवाल की इस बात का जवाब अमित शाह ने तत्काल दिया और ये कहा कि मोदी जी के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है और पार्टी में इस बात को लेकर कोई असमंजस नहीं है। हां अमित शाह ने केजरीवाल के दूसरे बयान का कोई जवाब नहीं दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी की सरकार बनते ही दो महीने बाद योगी को यूपी से हटा दिया जाएगा। दरअसल खुद को नरेंद्र मोदी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानने वाले मोदी 30 साल से भी ज्यादा पुराने सहयोगी अमित शाह ने बीजेपी 2014 में सत्ता तक पहुंचाने, कायम रखने और पार्टी को दुनिया का नंबर वन बनवाने में मेहनत बहुत की है और आज भी कर रह हैं।
यह अलग बात है उनकी इस मेहनत में उनकी भाव – भंगिमा, उनका रण – कौशल और भय की देह भाषा का भी भरपूर उपयोग हुआ है लेकिन यह अकाट्य है कि मोदी के बाद अगर कोई राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का मजबूत नेता है तो वो अमित शाह हैं। यह अलग बात है कि शाह चाणक्य ज्यादा हैं और चेहरा कम मगर मोदी आज जो भी हैं उसके पीछे अमित शाह का ही दिमाग और परिश्रम है जो पराक्रम में बदला है और उसका परचम लहराता नजर आ रहा है। जाहिर तौर पर शाह के लिए पार्टी से अपना मेहनताना हासिल करने का सही समय आ रहा है और वह यहां पर कोई चूक नहीं करना चाहते और कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते।
अमित शाह के घोषित – अघोषित सियासी प्रतिद्वंद्वी योगी आदित्यनाथ ही एक ऐसे नेता है जो पीएम की कुर्सी और अमित शाह के बीच में खड़े नजर आ रहे हैं। अपनी लोकप्रियता और पार्टी के चाल चरित्र और चेहरा के हिसाब से यह भगवाधारी नेता अमित शाह से बीस नजर आते हैं और संघ की चाह भी इनके बड़े कद का बनने और बनाने में शामिल है क्योंकि योगी ने संघ के दखल से ही 2017 में सीएम की कुर्सी पाई थी और 2022 में अपनी मेहनत से दोबारा जीतकर आए थे।
योगी की लोकप्रियता ही उनका दुश्मन है और अमित शाह इसी वजह से उन्हें शिवराज, वसुंधरा और खट्टर की तरह पार्टी की मुख्य धारा से रुखसत कर देना चाहते हैं। 2024 की चुनावी रणनीति में दिल्ली के नेताओं ने उन्हें बुलाकर केंद्र में आने का आॅफर भी दिया था लेकिन इस आॅफर पर योगी ने यह कह दिया था कि वो गोरखनाथ मठ लौट जाना पसंद करेंगे लेकिन लखनऊ से दिल्ली नहीं जाएंगे। देखा जाए तो यह बात अमित शाह के पक्ष में जा सकती है और दोनों के बीच यह समझौता हो सकता है कि योगी लखनऊ में बने रहें और दिल्ली पर शाह के दावे का साथ दें या कम से कम विरोध न करें लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा हैं। इसलिए चुनाव के दौरान ही दोनों नेताओं की तकरार चरम पर आ गई है। अब केजरीवाल के बयान ने उसे नए सिरे से चर्चा में ला दिया है। ठाकुरों का अपमान और बेरुखी का आरोप झेलने वाली बीजेपी के खिलाफ गुजरात, राजस्थान और यूपी में ठाकुरों के आंदोलन को योगी से जोड़कर देखा रहा है और उन्हें इसे मैनेज करने के लिए लगाया भी गया लेकिन यह पूरी तरह मैनेज नहीं हो पाया। बताया जाता है कि इसका असर मतदान पर भी पड़ा है।
अब आगे दिल्ली योगी के खिलाफ यूपी में ठाकुर नेता तैयार करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके तहत उनके योगी के दोस्त और दुश्मन ठाकुर नेता टटोले जा रहे हैं। राजा भैया से बैंगलुरु बुलाकर मुलाकात की जा रही है। बाहुबली पूर्व सासंद धनंजय सिंह को जेल से निकलवाकर उन्हें अभयदान दिया जा रहा है। महिला खिलाडियों के साथ दुष्कर्म के आरोपी मोदी भक्त बृजभूषण शरण सिंह भी यह साफ तौर पर कह रहे हैं कि योगी उनके नेता नहीं है जिसे जो समझना है समझ लें सिर्फ मोदी ही उनके नेता हैं। एके शर्मा और ओपी राजभर के मामले में दिल्ली से लोहा लेने वाले योगी यह सब सुन और समझ रहे है और साथ में यह भी कि मोदी भले ही राज्य की 80 सीटों के लिए उन्हें चुनावी मंचों पर उपयोगी बताएं लेकिन वह शाह के खिलाफ जाकर न तो उनकी कोई मदद कर सकते हैं और न ही उनके कोप से बचा सकते हैं। यही वजह है कि योगी मोदी के बाद अपनी ही तरह संघ के करीबी उस नितिन गडकरी को दिल्ली की गद्दी पर देखना चाहेंगे जिनके प्रेम भाव में वह नागपुर में उनके घर तक हो आए हैं और यह घर नागपुर के राजभवन से महज सात किमी की दूरी पर है जहां दस साल में पहली बार दूसरे दौर के मतदान के दिन पीएम मोदी ने रात गुजारी थी और गडकरी उनसे मिलने भी नहीं आए थे।
सात चरणों के मतदान के और चार जून को मतगणना के बाद यह पता चलेगा किसके चरण कहां होंगे और किसका हाथ किसकी गर्दन पर होगा तब तक अपने बयान से बीजेपी के अंदर और बाहर सरगर्मियां ला देने वाले केजरीवाल के चरण अपनी पार्टी के लिए कुछ सीटों का फायदा कराकर तिहाड़ जेल वापस चले जाएंगे।