लखनऊ। मरीजों की जान से खिलवाड़ करने और उपचार के नाम पर गलत ढंग से अधिक धन वसूलने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने यह चेतावनी निजी अस्पतालों के संचालकों को दी है। इस कड़ी में मैनपुरी की निजी अस्पताल का पंजीकरण भी रद्द कर दिया गया है। उप मुख्यमंत्री की यह चेतावनी पूरी तरह से प्रासंगिक है, लेकिन कितना असर दिखाएगी, यह कहना कठिन है। इसे मूर्त रूप देने की दिशा में गंभीरता से कार्य किया जाना चाहिए। इसके साथ ही निजी अस्पतालों की कुंडली खंगाले जाने की आवश्यकता है। कारण यह है कि निजी अस्पतालों की पंजीकरण में बड़े पैमाने पर अनियमितता की आशंका रहती है। पूरे प्रदेश में अभियान चलाकर इस बात की जांच की जानी चाहिए अस्पतालों का पंजीकरण किस नाम से है और इन्हें संचालित कौन कर रहा है। गोरखपुर में पिछले माह उपचार के दौरान गर्भवती की मौत के बाद मामला प्रकाश में आया कि अस्पताल संचालक ने चिकित्सा से संबंधित कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की है। इसके बावजूद वह खुद को चिकित्सक बताते हुए? 12 वर्षों से अस्पताल का संचालन कर रहा है। जिस चिकित्सक के नाम पंजीकरण था, उसे प्रति मरीज तय धनराशि दिया करता था । स्पष्ट है कि पंजीकरण में फर्जी वाडा करने वाले अस्पतालों में मरीजों के जीवन से खिलवाड़ तो होता ही है, बेहिसाब धना दोहन भी किया जाता है । यदि गहन छानबीन कराई जाए तो प्रदेश में इस तरह के कई मामले पकड़ में आएंगे। अस्पताल, नर्सिंग होम और जांच केंद्रों की निगरानी की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग की होती है, लेकिन वह इस बात से अनभिज्ञ रहता है कि किस चिकित्सक के नाम पर कितने अस्पतालों को पंजीकरण हैं। इन्हीं अस्पतालों के कारण से सेवा भाव वाले चिकित्सक भी? संदेह? के घेरे में आ जाते हैं। उन्हें कई प्रकार के दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। पंजीकरण में फजीर्वाड़ा कर अस्पतालों के संचालन पर अंकुश के लिए कठोर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। निगरानी में कोताही बरतने वाले स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों को भी कार्रवाई की परिधि में लाया जाना चाहिए।