अमर आनंद वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली तैयार है। लखनऊ की सूरत बदलने की पूरी तैयारी है लेकिन लखनऊ इसके लिए तैयार नहीं है। अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे की जगमग रौशनी में 2024 के लिए रास्ता देखा जा रहा है लेकिन सिराथू में हारने और घोसी में हार के जिम्मेदार माने जाने वाले पिछड़ों के एक बड़े नेता पूरा दम लगकर भी नाउम्मीदी के अंधेरे से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। 2017 में उनके हाथ से गया मौका दोबारा पाने का कोई योग, संयोग या फिर प्रयोग कारगर होता नहीं नजर आ रहा है। यूपी बीजेपी में खुद को ओबीसी का सबसे बड़ा चेहरा घोषित करने वाले नेता जी अपने पराक्रम और दिल्ली की परिक्रमा के बावजूद अपने तमगे से उप हटवाने में नाकाम साबित हुए हैं । पड़ोसी राज्य बिहार में ओबीसी के लिए पचहत्तर फीसदी आरक्षण की राजनीति , यूपी के तकरीबन 100 पिछड़े विधायकों की लामबंदी और दिल्ली में बैठकों का दौर भी ये दूरियां खत्म नहीं कर पा रहा है। शाह की प्रबल चाह के बावजूद मौर्य के लिए शुभ मुहूर्त नहीं आ रहा है। 2024 से पहले पार्टी की कोशिश ये है कि विरोधी दलों के मुकाबले खुद को पिछड़ों का सबसे बड़ा हिमायती साबित किया जाए। फिलहाल पार्टी पर यह आरोप है कि पीएम खुद को ओबीसी कहते नहीं थकते लेकिन पार्टी के शासन वाले किसी भी राज्य में ओबीसी सीएम नहीं है।
दरअसल पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से पहले शाह की देखरेख दिल्ली लखनऊ को पूरी तरह अपने गिरफ्त में करना चाहती है और योगी का कद और उनकी कार्यशैली इसमें बड़ी बाधा है। कहा जा रहा है कि योगी अगर भड़क गए तो 2024 में यूपी में पार्टी को तीस सीटों तक नुकसान हो सकता है और मोदी को तीसरी बार पीएम बनाने की योजना नाकाम हो सकती है। हालंकि पिछड़े वोटर ने अगर विपक्ष का साथ दिया तो निश्चित ही पार्टी को कम से कम पच्चीस सीटों पर कड़ी टक्कर मिल सकती है।
मोदी के प्रिय और उनके बाद खुद को पीएम पद का दावेदार समझने वाले शाह योगी को इसलिए भी काबू करना चाहते हैं ताकि कम सीटों की सूरत में उनका कद मोदी या खुद उनकी दावेदारी को चुनौती न दे सके।
इधर राजभर और चौहान जैसे नेताओं के मंत्री बनने की उम्मीदों पर पानी फेरकर और मौर्य की अयोध्या की कैबिनेट मीटिंग में गैरहाजिरी को नजरअंदाज कर योगी 2024 के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं। गोरखपुर से लेकर नागपुर तक उनका बोलबाला है और रहेगा। रही बात दिल्ली की तो फिलहाल यह उनकी योजना का हिस्सा नहीं है।
योगी के सियासी मिजाज को जानने वाले यह जानते हैं कि उनको दबाव में लेकर उनसे कुछ कराया नहीं जा सकता। दिल्ली के नेता इस बात को भली भांति जानते हुए भी बार बार एक ही गलती को दोहराते हैं। 2022 के पहले लखनऊ में योगी के खिलाफ हुई सुनियोजित बगावत , बड़े अफसरों की तैनाती , राजभर की वापसी जैसे कई मामलों में दिल्ली की दखल से आहत योगी इन सब के आदी हो चुके हैं उन्हें मालूम है दिल्ली के किस दांव पर कब और कैसे जवाब देना है। यही वजह है कि योगी न तो केशव मौर्य को के लिए न कोई रास्ता दे रहे हैं और न ही राजभर को भाव।
फिलहाल यूपी के साथ साथ पूरे देश को पांच राज्यों के चुनावी नतीजों का इंतजार है। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि दिल्ली से लखनऊ तक कौन कौन सी सियासी चालें चली जाएंगी।