राकेश कुमार
लखनऊ। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि अपराधी और भ्रष्ट्र प्रवृत्ति के लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगे और ऐसा तभी संभव है जबकि सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमों का जल्द से जल्द निस्तारण किया जाए। एमपी एमएलए कोर्ट की स्थापना भी इसी उद्देश्य से की गई थी कि ऐसे मामलों की शीघ्रता से सुनवाई हो। संगठित अपराध के बूटे चुनाव जीत का सदन पहुंचने वाले कई अपराधियों को इस कोर्ट ने सजा सुनाई है, फिर भी बड़ी संख्या में मुकदमे अभि लंबित पड़े हैं। इसलिए हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एमपी एमएलए स्पेशल कोर्ट को निर्देश दिया है कि फासी, उम्र कैद तथा 5 वर्ष से अधिक दंड वाले आपराधिक मामलों को प्राथमिकता के आधार पर यथाशीघ्र तय किया जाए। वास्तव में ऐसे मामले प्रभावशाली लोगों के होते हैं जो किसी ने किसी तरह तारीखे बढवाने में सफल हो जाते हैं ताकि जल्द फैसला ना आए और उनके खिलाफ चुनाव आयोग कोई कार्रवाई न कर सके। क्योंकि अब उच्च न्यायालय खुद ऐसे मामलों की मॉनिटरिंग करेगा तो उम्मीद की जानी चाहिए कि एमपी एमएलए अदालतें भी इसमें निहित उद्देश्य को गंभीरता से समझेगी। राजनीति में दागियों का प्रवेश कितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 403 सदस्यों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में आधे से अधिक सदस्य किसी ने किसी मामले के आरोपी हैं। इसी आधार पर मुकदमों की संख्या भी बड़ी है। पिछले साल प्रदेश में एमपी एमएलए कोर्ट में 1300 से अधिक मामले चल रहे थे। इनकी सुनवाई में तेजी आनी ही चाहिए ताकि जो लोग राजनीतिक साजिश और ईर्ष्या के चलते मुकदमों में आरोपित बनाए गए हों , उन्हें राहत मिल सके। राजनीति में सुचिता की दृष्टि से? एमपी एमएलए पोर्ट में कितनी प्रभावी हो सकती है,? इसे मुख्तार अंसारी और विजय मिश्रा जैसी माफिया को मिली सजा से समझा जा सकता है। कई आपराधिक मुकदमे दर्ज होने के बावजूद के अपने क्षेत्र में चुनाव जीतने में सफल हो जाते थे क्योंकि किसी में उन्हें सजा नहीं हुई थी। कोई अपराधी के चुनाव जीतता है तो वह लोकतंत्र की प्रतिष्ठा और गरिमा को हानि पहुंचाता? है।