नवयुग कन्या महाविद्यालय के संस्कृत विभाग के तत्वाधान में संस्कृत सप्ताह के प्रथम दिन संस्कृत दिवस निमित्तक आॅनलाइन राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय की अध्यक्षता में एवं डॉ वन्दना द्विवेदी के संयोजकत्व मे आयोजित किया गया ेश्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन संस्कृत दिवस मनाया जाता है राष्ट्रीय विद्युत संगोष्ठी का प्रारंभ वंदना द्विवेदी द्वारा मंगलाचरण से किया गया तथा इसके पश्चात स्नातक पंचम सत्र की छात्रा प्रतिभा द्विवेदी के द्वारा संस्कृत ध्येय मंत्र एवं सरस्वती गीत प्रस्तुत किया गया ेइस कार्यक्रम के और सरस्वत अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में महाराज सयाजी राव विश्व विद्यालय वडोदरा गुजरात के, परम्परागत संस्कृत विभाग के प्रोफेसर कपिल देव शास्त्री जी आभासी मंच पर उपस्थित रहे ेमुख्य वक्ता के द्वारा अपने उद्बोधन में गुरु शिष्य परंपरा पर विचार प्रस्तुत किया गया े उन्होंने यह कहा कि आज गुरु और शिष्य के सम्बन्धों में निरन्तर ह्रास आया है, वेदों एवं उपनिषदों के उदाहरणों द्वारा गुरु शिष्य सम्बन्धों को सुदृढ़ करने पर जोर दियोवैदिक विचारधारा के अनुसार बालक शैशवावस्था को पार कर मातृमान और पितृमान बनकर आचार्यवान होने के लिए गुरुकुल में प्रविष्ट होता है तब आचार्य रूप अग्नि में अपने आप को समिधा बनकर ज्ञान ज्योति से प्रदीप्त हो जाता है यह प्रथम शिक्षा का आश्रम होता है गुरु वह है जो मृत्यु बनाकर विद्यार्थियों के सब कु संस्कारों को सुधार सकें ेशिक्षक को इस कला में अवश्य ही निपुण होना चाहिए गुरु औषधि बनाकर शिष्यों के शारीरिक एवं मानसिक रोगों को दूर करने वाला होता हैे संस्कृत दिवस निमितक आॅनलाइन राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी के द्वितीय विशिष्ट वक्ता डॉ चंद्रकांत दत्त शुक्ला जी रहे जो वरिष्ठ सहायक आचार्य संस्कृत विभाग संत गणिनाथ राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मोहम्मदाबाद गोहना मऊ से थे ेउन्होंने सुसंस्कृत समाज की अवधारणा विषय पर अपने विचार को व्यक्त किया विशिष्ट वक्ता डॉ शुक्ल के द्वारा कहा गया कि हम भारतीय हैं ,और हमारी संस्कृति सनातन है जो हमारे ऋषि मुनियों -पूर्वजों विद्वानों की सारस्वत साधना ज्ञान परम्परा से अलंकृत है इसी श्रेष्ठ परम्परा की आत्मा संस्कृत है इसलिए सभी लोग स्वयं को सुसंस्कृत बनाए ,जब स्वयं सुसंस्कृत बनेंगे तभी परिवार और समाज भी सुसंस्कृत होगा यह तभी संभव है जब हम सभी स्वयं देवभाषा संस्कृत को आत्मसात करेंगेमहाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय ने कहा कि गुरु कुम्हार के सदृश होता है जो कच्चे घड़े के अन्दर हाथ रखकर घड़ा को सही स्वरूप प्रदान करता है उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को कायिक-वाचिक-मानसिक रुप से सुदृढ़ता प्रदान करता है संगोष्ठी के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभागाध्यक्षा प्रोफेसर रीता तिवारी के द्वारा किया गय