लखनऊ। भारत देश के अंदर समय-समय पर अनेकों अनेक महान विभूतियों का जन्म हुआ जो अपने कर्मों को बल पर समाज और देश का मान बढ़ाया। जिस देश में शिक्षा का सर्वांगीण विकास होगा वह देश उतना ही समृद्ध और शक्तिशाली होगा। इसी क्रम में एक ऐसे शिक्षा जगत के गौरवशाली व्यक्ति के बारे में पाठकों को अवगत कराना चाहूंगा जो अपने कर्म और संकल्पों के बल पर समाज और देश का मान बढ़ाया है।
डॉ. रामदेव सिंह भदोरिया ग्राम झूसी नागर,भैसिया पुर, छिबरामऊ जनपद कन्नौज के निवासी थे। जो पवित्र गंगा एवं कालिंद्री नदी के तट पर बसा है। चमन एवं श्रृंगी ऋषि की तपो स्थली भी है । यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।डॉक्टर भदोरिया जनपद कन्नौज के अतिरिक्त दूसरे जनपदों के प्रतिष्ठित विद्यालयों में अपनी सेवाएं दी थी। उनकी प्रतिभा और अनुशासन का लोहा समस्त शिक्षा जगत मानता था। डॉक्टर भदोरिया बेहद सरल, मृदभाषी, न्याय प्रिय-अनुशासन प्रिय होने के साथ-साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। इनका संपूर्ण जीवन सादगी भरा था। हर व्यक्ति से सरलता से मिलते थे, सभी को अपना मानते थे। परिवार में सबसे बड़े होने का कर्तव्य भी बहुत ही अच्छे ढंग से निर्वाहन किया।
समाज में खासे लोकप्रिय होने के साथ-साथ समाज को एक नई दिशा देने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। अनुशासन के मामलों में कभी समझौता नहीं करते थे। डॉक्टर भदोरिया का निधन दिनांक-21-9-2023 दिन गुरुवार को 63 वर्ष की उम्र में एक लंबी बीमारी के कारण हुआ। इन्होंने अपने पीछे एक हरा भरा परिवार छोड़ कर गए, साथ ही उनकी पत्नी महान शिक्षाविद भी हैं। इनके निधन की खबर सुनकर समाज और समस्त शिक्षा जगत स्तब्ध रह गया। जब यह खबर समाज में आज की तरह फैली तो उनकी पार्थिव शरीर को एक झलक पाने के लिए हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से एकत्रित हो गए और सब की आंखें नम हो गई। इस प्रकार शिक्षा जगत के एक और सूर्य का अंत हुआ। शिक्षा जगत को इसकी भरपाई करना बहुत ही कठिन होगा।
समय चक्र टाइम्स के वार्ताक्रम में डाक्टर भदोरिया के छोटे भाई कमलेंद्र सिंह भदोरिया (हरियाली गुरु) ने बताया कि हमारे बड़े भाई पिताजी की मृत्यु के बाद पिता के संपूर्ण दायित्व को अपने ऊपर ले लिया और कभी भी हम लोगों को एहसास नहीं होने दिया कि बिना पिता के जीवन बच्चों का कैसे होता है। इस दायित्व को निभाकर समाज में भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया। पिताजी की मृत्यु का दुख उतना हम सभी को नहीं हुआ जितना आज हुआ है। उनकी बहुत अलग सोच थी जो आज आपको बताना चाहता हूं। स्वयं से स्वयं का संवाद ना होने के कारण ही बुराइयों का चक्र चलता रहता है। वह कभी नहीं रुकता। आदमी बुराई करता है, पाप का आचरण करता है। प्रश्न उठता है, श्री कृष्ण ने इसका जो उत्तर दिया वह आज भी उतना ही मूल्यवान है, जितना उस समय मूल्यवान था। उन्होंने कहा आदमी को पाप में धकेलने वाले काम और क्रोध रूपी शत्रु है। क्रोध ज्ञान पर पर्दा डालता है। ऐसी माया पैदा करता है कि आम आदमी ही नहीं समझ पाता कि वह पाप कर रहा है। आदमी में मूढ़ता पैदा हो जाती है और तब वह जानते? हुए भी नहीं जानता?, देखी हुए भी नहीं देखता। उसमें बुरे और भले का विवेक ही समाप्त हो जाता है। और तब वह ना करनी योग्य कार्य भी कर लेता है।
इसलिए संत महात्मा हमें ध्यान अभ्यास के जरिए स्वयं को स्वयं से या स्वयं को परमात्मा से जोड़ने की सलाह देते हैं। मनुष्य को जीवन में दुशासन, दुर्योधन, जरासंध, कंस का योग मिले। तब भी हंसना और युधिष्ठिर, भीम भीम, अर्जुन , श्री कृष्ण का योग मिले तब भी मुस्कुराना चाहिए। जीवन में आने वाली हर समस्या को ठोकर मारकर हटाते चलें, हवा से उड़ाते चलें, एक दिन सफलता के शिखर पर जरूर विराजमान होंगे।