लखनऊ। मध्य प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर सपा एवं कांग्रेस के बीच उलझी गांठ अब फिर से कसने की कवायद तेज हो गयी है। अब दोनों ही दल डैमेज कंट्रोल की ओर आगे बढ़ते दिख रहे हैं। भोपाल से कुछ नेता आज लखनऊ पहुंचे और सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ लबंी वार्ता की। वहीं सपा ने मध्य प्रदेश में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने पर जोर दिया। इस तरह इंडिया की गठबंधन की ढीली पड़ती गांठ को पुन: कसने की कोशिश दोनों ही ओर से शुरू हो गयी है। बीते कई दिनों से एमपी में सीटों के बंटवारे को लेकर सपा एवं कांग्रेस नेताओं के बीच तल्ख टिप्पणी की जा रही थी। ऐसा लगने लगा था कि इंडिया की गठबंधन की गांठ खुल जायेगी। वहीं सपा द्वारा यूपी में रायबरेली एवं अमेठी सीट पर प्रत्याशी उतारने की धमकी से भी कांग्रेस दहशत में आ गयी। वहीं कांग्रेस नेताओं द्वारा अखिलेश यादव को संदेश आने के बाद उनके तेवर ढीले पड़ गये। अब दोनों दलों की ओर हमला कमजोर हो गया है। साथ ही दोनों दलों के नेता अब गठबंधन पर कुछ भी बोलने से कतराने लगे हैं। सूत्रों की माने तो आज •ोपाल से सपा नेताओं का एक दल लखनऊ पहुंचा। सपा कांर्यालय में पार्टी मुखिया अखिलेश यादव के साथ के साथ एमपी से आए नेताओं की लंबी वार्ता हुई। अखिलेश ने इस दौरान मध्य प्रदेश में 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की शर्त रखी है।
वहीं सपा ने एमपी में 33 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिये है। जिसमें से करीब दर्जन भर ऐसी सीटें है जहां पर कांग्रेस एवं सपा प्रत्याशी आमने सामने ताल ठोक रहे हैं। साथ ही सपा बाकी 17 सीटों पर जल्द प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही सपा एवं कांग्रेस दोनों दलों के नेताओं ने गठबंधन पर कुछ भी बोलना बंद कर दिया है।
सवाल यह है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस सीधे तौर पर भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। वहां पर सत्तासीन भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी है। इसलिए कांग्रेस रिस्क नहीं लेना चाहती है। वह अपने नुकसान को कम करने के लिए मजबूरन सपा का साथ चाहती है। इसलिए चर्चा है कि कांग्रेस एमपी में सपा को अलग नहीं लड़ने देगी जिससे भाजपा को लाभ मिल सके। सीटों का जोड़ तोड़ भी होने की उम्मीद से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही सपा को जो स्थित एमपी में है वहीं हाल यूपी में कांग्रेस के है। इसलिए दोनों की मजबूरी है साथ चलना। हालाकि कांग्रेस एवं सपा के चुनावी वादे भी टकरा रहे हैं।
दोनों दलों ने एमपी में जातिगत जनगणना कराने और पुरानी पेंशन बहाली, किसानों को मुफ्त बिजली सहित कई घोषणाएं कर रखी है। साथ ही दोनों दलों का जोर पिछड़ा दलित एवं अल्पसंख्यक पर है।