डॉ. राजेश कुमार दीक्षित
पं. उमाशंकर दीक्षित जिला (पुरुष) चिकित्सालय, उन्नाव (उ०प्र०)
पिंक आई या कंजक्टिवाइटिस, ऊपरी और निचली दोनों पलकों के नीचे और आंख के सफेद हिस्से के आवरण की सूजन है। इसके लिए सामान्य चिकित्सा शब्द नेत्रश्लेष्माशोथ है। आयुर्वेद में इस स्थिति को नेत्राभिष्यंद कहते हैं। यह मूल रूप से जीवाणु, विषाणु और अनूर्जता के कारण होती है। यद्यपि यह स्थिति चोट लगने, आंखों को बहुत जोर से रगड़ने, आंख में किसी विदेशी वस्तु (Foreign body) के कारण भी हो सकती है। अनूर्जित नेत्रश्लेष्माशोथ Pollen grains, Beauty products, जानवरों की त्वचा और बालों से होता है। नेत्रशोथ के सभी मामलों में आंख का सफेद हिस्सा लाल हो जाता है और किरकिरी महसूस होती है।
जीवाणु संक्रमण में मवाद जैसा स्राव उत्पन्न होता हैं, जबकि विषाणु संक्रमण में केवल हल्का सा स्राव हो सकता है। अनूर्जित नेत्रश्लेष्माशोथ में, आमतौर पर पूरे वर्ष बिना किसी स्राव के आंख के सफेद हिस्से में लम्बे समय तक लालिमा और खुजली होती है। लेकिन पराग के मौसम में यह अधिक गंभीर होती है। आंखों में पानी आ सकता है। नाक बह सकती है और छींके आ सकती हैं। उचित देखभाल के साथ जीवाणुजनित नेत्रश्लेष्माशोध दो से तीन दिनों में, विषाणुजनित श्लेष्माशोथ अपने आप एक सप्ताह के भीतर और अनूर्जित नेत्रश्लेष्मा शोथ को ठीक करने में एक से दो महीने लग सकते हैं।
ठीक करने के उपाय
अपनी उंगलियों को आंख पर बार-बार न लगाएं। आंखों को पोछने के लिए साफ और ताजा रुमाल प्रयोग करें। अपनी आंखे न मलें। अपनी आंखें बन्द करके, गर्म पानी में भिगोया हुआ कपड़ा लगाएं। एक बार में कम से कम पांच मिनट के लिए दिन में तीन से चार बार प्रभावित आंख का उपचार करें। राहत के लिए आंखों पर ठंडा सेक भी लगा सकते हैं।ठंडे पानी में भिगोया हुआ कपड़ा या छोटी तौलिया या बर्फ के टुकड़े लपेटे। जब तक संक्रमण पूरी तरह से ठीक न हो जाए तब तक आंखों का मेक अप करने से बचें। कभी भी मेकअप का सामान और चश्मा दूसरों के साथ साझा न करे। संक्रमण काल मे कॉन्टैक्ट लेंस न पहनें। अपने हाथ बार-बार धोएं और अपने स्वयं के तौलिए का प्रयोग करें। यह बीमारी बहुत संक्रामक होती है और दूषित उगलियों, तौलिए से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है। सभी व्यक्तिगत वस्तुओं को प्रतिदिन साबुन और पानी से साफ करें। संक्रमित आंख को न छुएं क्योंकि संक्रमण अच्छी आंख में फैल है सकता है।
आयुर्वेदिक उपचार
(1) दारूहरिद्रा की जड़ (2 भाग) को पानी (26 भाग) में उबालें। तीन भाग मात्रा रह जाने पर शहद के साथ मिलाकर आंखों में मलहम के रूप में लगाए ।
(2) हल्दी के काढ़े से आंखों को साफ करें।
(3) त्रिफला चूर्ण (15 gm) को पानी (200ml) में आधे घण्टे तक भिगोकर,उबालकर और छानकर इसका प्रयोग प्रभावित आंखों को 3 से 4 बार आंखों को धोने में करें।
(4) विशिष्ट नेत्र प्रक्रियाएं जैसे तर्पण, पुटपाक, सेक, आश्यचोतन, अंजन आदि विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए
(5) शमन चिकित्सा में कुशल आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करके सप्तामृत लौह, महात्रिफला घृत, हरिद्रा खण्ड, पथ्यादि क्वाथ का प्रयोग करें।
(6) ताजा Breast Milk आंख में डालें।