लखनऊ। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ तेलंगाना की चुनाव परिणाम एक बड़ी हद तक चौंकाने वाले रहे तो? इसलिए नहीं? कि भाजपा ने एक हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों में जीत हासिल की, बल्कि इसलिए भी कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसने कहीं बड़े अंतर से कांग्रेस को हराया। राजस्थान में रिवाज कायम रहने यानी हर 5 वर्ष में सत्ता बदलने की आसार थे और अंतत: ऐसा ही हुआ, लेकिन जिस मध्य प्रदेश में कांटे का मुकाबला बताया जा रहा था, वहां कांग्रेस को करारी हार मिली। इसी तरह जिस छत्तीसगढ़ को लेकर यह माहौल बनाया गया था कि? कांग्रेस आसानी से वापसी करने में सफल रहेगी, वहां भी भाजपा उस पर भारी पड़ी। मध्य प्रदेश के साथ छत्तीसगढ़ में इतने बड़े अंतर से जीत की अपेक्षा शायद कई भाजपा नेता भी नहीं कर रहे होंगे। यह कांग्रेस की आघात ही है कि उसने राजस्थान के साथ छत्तीसगढ़ भी गवा दिए और मध्य प्रदेश में भी हाथ मलते रह गई। निसंदेह तेलंगना की जीत ने उन्हें सांत्वना प्रदान करने का काम किया है, लेकिन उसका यह भरोसा तो अवश्य ही डिगा? होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में वह अपने सहयोगी दलों के साथ भाजपा को तगड़ी टक्कर दे सकती है। अपनी ऐसी स्थिति के लिए वही अधिक जिम्मेदार है, क्योंकि उसने विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में सहयोगी दलों को कोई भाव नहीं दिया और राहुल गांधी अपना यह बेसुरा राग अलापते रहे? कि भाजपा तो केवल अंबानी -अडानी के लिए काम करती है। चुनाव नतीजे से यह भी साफ है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की लोक लुभावन घोषणाओं ने उसके पक्ष में माहौल बनाने का काम किया। ऐसा इसलिए हो सका, क्योंकि प्रधानमंत्री लोगों में यह भरोसा जगाने में सफल रहे कि वह जो कुछ कहते हैं, उसे पूरा भी करते हैं। प्रधानमंत्री पर मतदाताओं ने अधिक भरोसा जताया तो इस कारण भी कि अभी इससे भली भांति परिचित थे कि जन कल्याण और विकास की तमाम योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने में मोदी सरकार का कोई सानी नहीं। इसमें संदेह नहीं की प्रधानमंत्री की प्रति जनता के भरोसे ने भाजपा का काम कहीं अधिक आसान कर दिया। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के परिणाम यह भी बता रहे हैं कि भाजपा ने हिमाचल और कर्नाटक के चुनाव से सबक लिया और राज्यों के स्तर पर गुटबाजी एवं असंतोष को दूर करने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया। इसके अलावा उसने सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव में मैदान में उतार कर जो नई पहल की, वह भी कारगर सिद्ध रही। मध्य प्रदेश ,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के दावेदारों की घोषणा न करने के बाद भी जीत हासिल कर भाजपा ने यह भी सिद्ध किया कि उसे मौके के हिसाब से चुनावी रणनीति बनाना और बदलना आता है।