लखनऊ। भूमि निरीक्षक रहे स्वर्गीय दादा अब्दुल वहाब खाँ जी हिंदी संस्कृत के विद्वान थे ही, उसके अलावा रामायन रामचरितमानस की अनगिनत पंक्तियाँ भी कंठस्थ किये हुए थे। पिता श्री शहीद खाँ जी भी संस्कृत स्नातक सेवानिवृत हिंदी प्रवक्ता है, मैं संस्कृत स्नातक, हिंदी से एमए एमफिल बीएड होने के साथ महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र से हिंदी माध्यम से रंगमंच और फिल्म से एमए भी हूँ, साथ ही मेरी पत्नी सादिका खातून भी हिंदी से एमए की हुई है।
दिलचस्प बात ये है कि मुझसे छोटा वाला भाई गुफरान अहमद खाँ संस्कृत स्नातक हिंदी से एमए बीएड नेट और उससे भी छोटा वाला भाई सलमान खां इलाहाबाद विश्विद्यालय से संस्कृत स्नातक हिंदी से एमए करके अभी अभी बीएड पुरा किया है। एक छोटा भाई इरफान खां हिंदी विषय लेकर पीसीएस मैंन्स लिखता है।
मेरे परिवार से अधिक हिंदी की कौन सेवा कर रहा है। मेरा मानना है कि भाषा की पढाई करने के लिए धर्म आड़े नही आता है। मेरा नाम इमरान देखकर संपूणार्नंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाले तब दंग रह गए थे, जब अकेले मुस्लिम होकर शिक्षाशास्त्री की पढाई करने गए थे और टॉप किये थे। जब लोग देखते है कि इस परिवार का हर एक सदस्य हिंदी संस्कृत की रोटी खाता है , तो लोग गर्व से फूल जाते है और दुवाएं देते है। सच तो यह है कि जहाँ अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को लोग कम तरजीह देते है वही मेरा अपना परिवार हिंदी को दिल मे बसाकर रखे हुए हैं। वाकई हिंदी से हम सभी को बेहद लगाव है।