नई दिल्ली। मतस्य 6000 के जरिए निकेल, कोबाल्ट, मैंगनीज, हाइड्रोथर्मल सल्फाइड और गैस हाइड्रेट्स की तलाश की जाएगी। इसके साथ ही हाइड्रोथर्मल वेंट और समुद्र में कम तापमान वाले मीथेन रिसने में केमोसिंथेटिक जैव विविधता की जांच करने की जिम्मेदारी भी इसे सौंपी गई है। जमीन से चांद तक ही नहीं बल्कि चांद से लेकर समुद्र की गहराइयों में भी भारत का नाम होगा। इस सपने को पूरा करने के लिए अब भारतीय वैज्ञानिक अब समुद्रयान परियोजना के लिए पूरी तरह से तैयार है। समुद्रयान परियोजना के जरिए पानी में 6000 मीटर नीचे जाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। इस परियोजना के तहत कोबाल्ट, निकेल, मैंगनीज जैसी बेहद कीमती धातुओं और खनिजों की तलाश होगी। इसके लिए तीन लोगों को स्वदेश में निर्मित पनडुब्बी में 6000 मीटर की गहराई में भेजा जाएगा। इस पनडुब्बी का नाम मतस्य 6000 है जिसका निर्माण भारत में बीते दो वर्षों से किया जा रहा है। वर्ष 2024 की शुरूआत में चेन्नई तट के पास ही बंगाल की खाड़ी में इसका पहला समुद्री परीक्षण होगा।। बता दें कि जून 2023 में उत्तरी अटलांटिक महासागर में पर्यटकों को ले जाने के दौरान टाइटन फट गई थी, जिसके बाद से वैज्ञानिक इस स्वदेश निर्मित पनडुब्बी के डिजाइन व तकनीक पर अधिक फोकस किया जा रहा है। इस मतस्य 6000 का निर्माण चेन्नई स्थित राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (एआईओटी) के इंजीनियर, वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। इस मतस्य 6000 के डिजाइन, इसमें उपयोग हुई सामग्री, परीक्षण, प्रमाणन, मानक संचालन प्रक्रियाओं की समीक्षा की जा चुकी है। इस संबंध में थ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने कहा, ह्लसमुद्रयान मिशन गहरे महासागर मिशन के हिस्से के रूप में चल रहा है। हम 2024 की पहली तिमाही में 500 मीटर की गहराई पर समुद्री परीक्षण करेंगे।