राकेश कुमार
लखनऊ। महिला आरक्षण लागू होने के बाद महिलाएं संसद में कानून तो बनाएंगे ही लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मनसा इससे पहले सड़क पर कानून लागू करवाने में भी महिलाओं की भूमिका बढ़ाने की है। इसकी बानगी मुख्यमंत्री के उन निदेर्शों में भी मिलती है जो उन्होंने सोमवार को कानून व्यवस्था की समीक्षा के दौरान अधिकारियों को दिए। हर जिले में महिला थाने खुले हुए है।, जहां महिला पुलिस कर्मियों की ही तैनाती है। मनसा है कि इन महिला थानों से इतर भी जिले के काम से कम एक थाने की कमान महिला अधिकारी को दी जाए। यह विचार अचानक नहीं आया है। अपवाद छोड़ उत्तर प्रदेश में महिला अपराधों का शोर लंबे समय से थमा है तो उसके मूल में भी प्रयास हैं जो पिछले कुछ वर्षों में पुलिस महकमे को समय अनुरूप ढालने के लिए किए गए। यूपी पुलिस में बीते 6 वर्षों में मानव संसाधन की कमी पूरा करने के लिए बिना देरी की नियुक्तियां हुई है। इनमें सर्वाधिक 22000 महिला पुलिसकर्मी हैं। महिला पीएसी बटालियन पहले ही बन चुकी है। इसके अलावा भी अभी और नियुक्तियां प्रस्तावित हैं। कानून व्यवस्था को वास्तविक रूप से तभी सफल माना जा सकता है जबकि महिलाओं और बच्चों के प्रति अत्याचार करने वालों में पुलिस का भय हो। इसी उद्देश्य से मिशन शक्ति अभियान भी चलाया जा रहा है। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब इस तरह के मामलों में अपराधियों को जल्द से जल्द और कड़ी सजा मिले। फिर हाल आंकड़े इस दिशा में पुलिस का समर्थन करते हैं। आज महिलाओं की विरुद्ध होने वाले अपराधों में सजा की दर 59% से अधिक है। फिर भी अंबेडकर नगर में छात्र का दुपट्टा खींचने जैसी घटनाएं पुलिस के लिए शर्म का कारण बन जाती है तो इसका मुख्य कारण यही है कि पुलिस ने शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया । अब जब थानों के नेतृत्व में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी तो ऐसी शिकायत निश्चित रूप से पुलिस की प्राथमिकता में आएगी जो की जरूरी भी है।