आर्थिक नाकेबंदी शुरू होने के कारण इंफाल तक वाहन नहीं पहुंच पा रहे थे। इस कारण इलाके में जरूरी सामान की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही थी। नेशनल हाईवे 2 पर सेवा के ट्रैकों को आगे भी नहीं बढ़ने दिया जा रहा था। मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद हालत अब भी पूरी तरह से सुधरे नहीं है। मणिपुर की राजधानी इंफाल को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे को कुकी समुदाय ने बंद कर दिया था जिस कारण राज्य में जरूरी सामान की सप्लाई पर रोक लग गई थी। आर्थिक नाकेबंदी के कारण जरूरी सामान सप्लाई नहीं हो पा रहा था। हाईवे बंद होने के कारण वहां बीच में ही फंस रहे थे। अब कुकी समुदाय ने सोमवार को आर्थिक नाकेबंदी के फैसले को निलंबित कर दिया है। आर्थिक नाकेबंदी शुरू होने के कारण इंफाल तक वाहन नहीं पहुंच पा रहे थे। इस कारण इलाके में जरूरी सामान की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही थी। नेशनल हाईवे 2 पर सेवा के ट्रैकों को आगे भी नहीं बढ़ने दिया जा रहा था। बता दे कि मणिपुर के कांगपोकमी में कुकी बहुल जिला है। यहां लॉ एंड आॅर्डर की हालत दुरुस्त करने में प्रशासन का रवैया बेहद उदासीन था। प्रशासन की दवाई को देखते हुए आदिवासी एकता समिति ने यहां आर्थिक नाकेबंदी लगा दी थी। इस आर्थिक नाकेबंदी के कारण इलाके में जरूरी सामान की आपूर्ति भी बाधित हो गई थी। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह ने कहा कि उनकी सरकार इंफाल घाटी के एक उग्रवादी समूह के साथ वार्ता कर रही है और जल्द ही एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। सिंह ने पीटीआई-वीडियो से कहा कि वार्ता अग्रिम चरण में है हालांकि उन्होंने भूमिगत संगठन का नाम नहीं लिया। मुख्यमंत्री ने कहा, हम आगे बढ़ रहे हैं और बहुत जल्द एक बड़े भूमिगत संगठन के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है। राज्य में तीन मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद यह पहली बार है जब सरकार की ओर से इस तरह की वार्ता को लेकर आधिकारिक पुष्टि की गई है।
इससे पहले सूत्रों ने कहा था कि सरकार प्रतिबंधित संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के एक धड़े के साथ वार्ता कर रही है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में तीन मई को आयोजित आदिवासी एकजुटता मार्च के बाद भड़की हिंसा में अब तक 180 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। मणिपुर की आबादी में मेइती लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।