नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को छह महीने के भीतर एक नीति बनाने का निर्देश दिया है। जिसके तहत भारी डीजल वाहनों को हटाकर उनकी जगह बीएस श्क वाहनों को लाया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि स्वच्छ हवा का अधिकार सिर्फ दिल्ली में रहने वाले लोगों का नहीं है, बल्कि पूरे देश के लोगों का है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को छह महीने के भीतर एक नीति बनाने का निर्देश दिया है। जिसके तहत भारी डीजल वाहनों को हटाकर उनकी जगह बीएस 6 वाहनों को लाया जाएगा। न्यायालय ने कहा कि स्वच्छ हवा का अधिकार सिर्फ दिल्ली में रहने वाले लोगों का नहीं है, बल्कि पूरे देश के लोगों का है। पीठ ने कहा, प्रदूषण, विशेष रूप से वायु प्रदूषण, पिछले कुछ दशकों से चिंता का विषय रहा है। वायु प्रदूषण भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीधे प्रभावित करता है। अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार में प्रदूषण-मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार भी शामिल है। वायु प्रदूषण का मुद्दा हर नागरिक के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह नागरिकों के जीवन स्तर को प्रभावित करता है और उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। यह देखते हुए कि बीएस श्क इंजन ट्रक और ट्रेलर स्वच्छ ईंधन पर चलते हैं, शीर्ष अदालत ने कहा कि वायु प्रदूषण का मुद्दा प्रत्येक नागरिक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने केंद्र से पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण द्वारा की गई सिफारिशों की जांच करने के लिए कहा, जिसे दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए न्यायालय द्वारा ही स्थापित किया गया है। न्यायमूर्ति अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति पंकज मिथल भी शामिल थे, ने वायु गुणवत्ता के बढ़ते स्तर को ध्यान में रखते हुए और प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए कई निर्देश पारित किए। सर्वोच्च न्यायालय ने कंटेनर कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया लिमिटेड (सीसीआईएल) द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया। अपील राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के 8 मार्च, 2019 के एक आदेश के खिलाफ थी। एनजीटी के आदेश में कहा गया था कि दिल्ली में तुगलकाबाद स्थित इनलैंड कंटेनर डिपो (आईसीडी) में डीजल वाहनों को आना बंद कर देना चाहिए, और चरणबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड और सीएनजी वाहनों पर स्विच करना चाहिए।