लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लडऩे के ऐलान के बाद एक बार फिर यूपी की सियासत गर्म हो गयी है। साथ ही इससे भाजपा के खिलाफ खड़ा होने वाला विपक्षी गठबंधन दरकने लगा है। ऐसे में भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्षी उम्मीद्वार उतारने की कोशिश पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। गठबंधन से दूरी बनाना बसपा के लिए मजबूरी है। अब वह इस बार सपा के साथ नहीं जा सकती और कांग्रेस की हालत यहां पर पतली है। वहीं विपक्षी गठबंधन में पड़ती गांठ में भाजपा अपना लाभ देख रही है।
बसपा सुप्रीमो मायावती की 2024 के चुनाव में अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता की कोशिश भी तार तार होती दिख रही है। इससे प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त उम्मीदवार नहीं होगा। यूपी में कांग्रेस लगातार कोशिश कर रही है कि भाजपा के खिलाफ सभी दल एकजुट होकर साझा प्रत्याशी उतारे जिससे बीजेपी को शिकस्त दी जा सके। इसे लेकर कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन भी बनाया जिसकी कई बैठकें हो चुकी है। इस गठबंधन में शामिल दलों के बीच सीट सियरिंग की कवायद चल रही हैं। वहीं कांग्रेस बसपा को भी साथ लाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन मायावती के इस ऐलान के बाद कांग्रेस अलग थलग पड़ गयी। उत्तर प्रदेश में लगभग बीस प्रतिशत दलित वोट है। भाजपा ने बसपा के इस बेस वोट बैंक में काफी हद तक सेंध लगा चुकी है। लेकिन अभी भी आधा वोट बसपा के साथ ही है। साथ ही मुस्लिम मतों पर भी बसपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
वहीं बसपा की तुलना में सपा की ताकत कमजोर है। क्योंकि सपा के पास यादव वोट के साथ ही कुछ मुस्लिम भी साथ है। साथ ही बसपा ने जब भी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा तो उसे नुकसान ही हुआ। 2014 का आम चुनाव बसपा ने अकेले लड़ा था उसे लोकसभा में एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन वोट प्रतिशत 19.77 प्रतिशत जरूर हासिल हुआ। इसी तरह 2019 में सपा के साथ मिलकर लड़ी बसपा ने 19.43 प्रतिशत मत प्राप्त करते हुए दस सांसद जीताएं। 2014 में सबसे खराब प्रदर्शन के बावजूद 80 में से 30 से अधिक सीटों पर बसपा ही दूसरे स्थान पर थी। इस तरह बसपा फिलहाल सपा के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती है। क्योंकि 2019 के चुनाव में बसपा को भले ही दस सीटें मिली हो पर उसका वोट प्रतिशत नहीं बढ़ा। सपा के पास ओबीसी के नाम पर सिर्फ यादव बिरादरी जुड़ी है और मुस्लिम वोट उसके पास है तो उसमें कुछ हिस्सेदार बसपा भी है। मुस्लिम मतों की एकजुटता भी भाजपा को हरा नहीं सकती। जबकि कांग्रेस की हालत यूपी में पतली है। कांग्रेस को 2014 में 7.53 प्रतिशत वोट के साथ दो सीटें और 2019 में 6.36 प्रतिशत वोट के साथ केवल एक सीट मिली । इस तरह कांग्रेस की किसी जातीय वोटबैंक पर उसकी पकड़ नहीं रह गयी है।
बसपा प्रमुख मायावती इन दिनों सपा से काफी नाराज दिख रही है क्योंकि उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव को गिरगिट तक कह डाला। साथ ही भाजपा को लेकर भी हमला बोला। लेकिन कांग्रेस के प्रति उनका साफ्ट कार्नर रहा। कुछ लोगों का कहना है कि यदि कांग्रेस सपा का साथ छोड़ दे तो बसपा इंडिया में शामिल हो सकती है। वहीं कांग्रेस बसपा से गठबंधन की आस लगाए हैं। यह भी तर्क दिया जा रहा हैं कि वह कांग्रेस से नाराज नहीं हैं। इस तरह बसपा अकेले चुनाव लडऩे में लाभ देख रही है। चुनाव परिणाम आने के बाद वह नये सिरे से गठबंधन कर सकती है। फिलहाल बसपा को लेकर सूबे की सियासत तेज हो गयी है।