अमर आनंद
वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल पर दिल्ली पर हावी है, प्रभावी है और शिव का राज समाप्त किए जाने के कई संकेत दिल्ली की ओर से दिए जा चुके हैं। केंद्रीय मंत्रियों को उनकी इच्छा के खिलाफ चुनाव लड़वाना और कैलाश जैसे नेता को विधानसभा में राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी को विजय के लिए अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करना या दिल्ली की रणनीति है और इस रणनीति के सूत्रधार हैं बीजेपी के घोषित नंबर दो यानी अमित शाह। यह बात पूरा देश जानता है और भोपाल में बैठी उमा भारती जैसी नेता भी जिन्हे लगभग अप्रासंगिक बना दिया है। यह एम पी में बीजेपी का वो दौर है,,जहां राजमाता की बेटी यशोधरा खुद को परिदृश्य से बाहर कर चुकी हैं और पिछले चुनाव के बाद कांग्रेस से बीजेपी की सरकार बबवाने के लिए आए उनके भतीजे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य धुंधले – धुंधले से ही नजर आ रहे हैं।
राज्य में मोदी और शाह की सक्रियता और शिवराज को मद्धिम चलने के निर्देश और उसके बाद विलुप्त कर दिए जाने के इरादे के बीच कुछ ऐसा हो रहा है जो दिल्ली को शायद ही पसंद आए। चुनावी सभाओं में मोदी की तरफ से नजर अंदाज किए जा रहे शिवराज अब भी खुद को कमलनाथ के खिलाफ लड़ रहे कमल के सबसे बड़े सिपाही के रूप में पेश करते हैं। शिवराज चुनावी प्रचार सामग्री से लगभग गायब हैं। लाडली समेत उनकी कई जनोपयोगी बताई जाने वाली योजनाओं की चर्चा तक नहीं की जाती फिर भी वह खुद को अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखने के पूरे प्रण के साथ तैयार हैं। हालांकि मीटिंग के दौरान सहयोगियों और अधिकारियों को साथ देने के लिए शुक्रिया कहने वाले शिवराज के अंदाज से यह लगा था कि वो आगे के लिए नाउम्मीद होते हुए एक तरह से विदा ले रहे हैं और दिल्ली के सामने हथियार डाल चुके हैं लेकिन अब यह लग रहा है कि शिवराज ‘ अभिमन्यु ‘ की अपने खिलाफ चक्रव्यूह तोड़ते हुए आगे बढ़ना चाह रहे है इस उम्मीद के साथ कि शायद वह सातवां घेरा भी तोड़ने में कामयाब रहें। नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, कैलाश विजय वर्गीय और इन सब से अलग ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिल्ली के आशीर्वाद से उनका सियासी अंत देखने को बेताब हैं लेकिन शिवराज अभी निराश नहीं हुए है। उनके प्रयास जारी हैं।
वह कभी मामा बनकर नए वोटरों को लुभाने की कोशिश करते हैं तो कभी इमोशनल कार्ड खेलते हुए महिलेओं से कहते है कि ऐसा भाई आपको दोबारा नहीं मिलेगा इसलिए इस भाई को दोबारा सीएम बनाना। हताशा से आशा की बढ़ते शिवराज ने तो डिंडोरी में जनता से कहा कि उन्हें फिर से सीएम बनाने के लिए वोट दें और उनसे हामी भी भरवाई। लगे हाथ यह भी पूछ लिया कि क्या वो 2024 मोदी को पीएम बनते हुए देखना चाहते है। बात यहीं तक नहीं थी, शिवराज ने आखिर में यह भी कहा कि जो हमारा साथ देगा हम उसका साथ देंगे। यह बात सीधे सीधे मोदी और शाह से भी जुड़ती है और एमपी बीजेपी के नेताओं से भी। जाहिर है कि शिवराज की यह बात दिल्ली तक पहुंची होगी लेकिन क्या दिल्ली उनका साथ देगी यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि दिल्ली शिवराज के बगैर ही सबकुछ प्लान कर चुकी है और उसी दिशा में आगे बढ़ती हुई भी दिख रही है।
2013 के आसपास एक समय ऐसा भी था जब मुख्यमंत्री के पद पर अपनी वरिष्ठता के दम पर शिवराज खुद प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानने लगे थे और मोदी की प्रतिद्वंद्वी के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश भी की थी लेकिन ऐसी कोशिश के लिए लगता है मोदी उन्हें मन से माफ नहीं कर पाए। इस बीच 2018 में राज्य में पार्टी की हार के बाद उन्हें केंद्र की राजनीति में लाकर उपाध्यक्ष बनाते हुए राज्य की राजनीति से बाहर करने की कोशिश हुई लेकिन सिंधिया की मदद से सरकार बनने पर फिर से भोपाल लाया गया और सीएम की कुर्सी पर काबिज किया गया। शिवराज दो साल पहले संसदीय बोर्ड से गडकरी के साथ ही बाहर किए जा चुके है।
व्यापम और पटवारी घोटाले समेत भ्रष्टाचार के कई दागों के बावजूद 17 साल तक राज्य की सत्ता में रह चुके शिवराज एमपी में बीजेपी के सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता हैं लेकिन पार्टी को इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता उनके लिए दिल्ली के दिल में नाममात्र की जगह भी नहीं रह गई है। यही वजह है कि एमपी में कब, क्या और कैसे होना है, इसका शिवराज से कोई लेना देना नहीं रह गया है।
केंद्रीय नेतृत्व शिवराज के खिलाफ जरूर है लेकिन अपनी जगह सही है। पार्टी के चाणक्य अमित शाह और अध्यक्ष जे पी नड्डा ने एमपी के लिए जो रणनीति बनाई है वो आंतरिक सर्वे पर आधारित है। पार्टी ने सत्ता विरोधी रुझान की आशंका से शिवराज की भूमिका को तकरीबन सीमित कर दिया गया है और मोदी के चेहरे को लेकर दिल्ली के अपने सिपहसालारों को आगे कर दिया है। यह एक तरह से 2023 के साथ साथ 2024 की भी तैयारी है। एमपी में 2019 में 39 में से 38 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2024 को ध्यान में रखते हुए अपना हर कदम फूंक – फूंक कर रखना चाहती है।