लखनऊ। पश्चिमी यूपी में जाटों की कही जाने वाली पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ने आम तौर पर हर चुनाव में साथी बदलने का काम करती रही है। तकरीबन 25 सालों में रालोद ने 11 बार साथ ही हर चुनाव में पाला बदल कर नये साथी पर भरोसा जताया। इस बार भी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सपा के साथ करीब पांच साल पुरानी दोस्ती तोड़कर भाजपा के साथ राजग में शामिल होने जा रहा है। इस तरह लगभग 15 साल बाद रालोद की एनडीए में पुन: वापसी हुई है। भाजपा के साथ आने के बाद पार्टी नेता इस समय जश्र में डूबे है साथ ही चुनावी तैयारियों पर ब्रेक लग गया है। पार्टी नेता रालोद मुखिया जयंत चौधरी के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं। रालोद बीते पांच साल से सपा के साथ रहा। इस दौरान गत लोकसभा एवं विधानसभा का चुनाव भी लड़ा। इस चुनाव में भी विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में मुख्य घटक के रूप था। सपा द्वारा इस चुनाव में रालोद को सात सीटें देने का आफर भी दिया गया था। भाजपा के खिलाफ रालोद नेताओं की बयानबाजी भी खुब चल रही थी। लेकिन रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने हृदय परिवर्तन कर राजग में शामिल होने जा रहे है। 12 फरवरी को जयंत चौधरी अधिकृत रूप से भाजपा के सहयोगी हो जायेंगे। इसके एवज में भाजपा ने जयंत चौधरी के दादा एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के साथ ही लोकसभा में दो सीटों का अफर मिला है। संभवत: यह सीट बागपत एवं मथुरा हो सकती है। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि चुनाव बाद रालोद केन्द्र एवं यूपी सरकार में भी शामिल हो सकता है। रालोद का प्रभाव वेस्ट यूपी में है क्योंकि इसी क्षेत्र में करीब दो करोड़ की आबादी जाट समाज की है। साथ ही इस क्षेत्र में दस लोकसभा एवं 40 विधानसभा क्षेत्रों में जाट समाज प्रभावशाली है। शायद इसीलिए भाजपा ने रालोद को अपने साथ ले लिया है।
रालोद का इतिहास देखे तो पार्टी का गठन 1999 में हुआ था। इसके बाद पार्टी भाजपा में शामिल हो गयी। 2002 का चुनाव रालोद ने भाजपा के साथ लड़ा जिसमें 14 सीटों पर जीत हासिल किया। इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में रालोद फिर पाला बदल कर सपा के साथ आ गया। इस चुनाव में रालोद को तीन सीटो ंपर विजय प्राप्त हुई। इसी तरह 2007 का चुनाव रालोद ने अकेले लड़ा तो दस विधायक जीते। 2009 के लोकसभा चुनाव में रालोद फिर भाजपा के साथ चुनाव लड़ा जिसमें पार्टी को पांच सीटों पर सफलता मिली। 2011 में रालोद ने भाजपा का साथ छोड़ कर कांग्रेस से जुड़े और चौ अजित सिंह केन्द्र में मंत्री बने। 2012 का चुनाव कांग्रेस के साथ लड़ा जिसमें पार्टी 9 विधायकों को जिताने में कामयाब रही। 2014 का लोकसभा चुनाव भी रालोद ने कांग्रेस के साथ लड़ा जिसमें पार्टी का खाता नहीं खुला। 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद के साथ किसी दल ने गठबंधन नहीं किया। ऐसे में वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरा जिसमें पार्टी को एक विधायक जिताकर ही संतोष करना पड़ा। बाद मे ंयह विधायक भी रालोद के साथ चला गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोद ने सपा- बसपा के गठबंधन से चुनाव लड़ा, लेकिन खाता नहीं खुला। 2022 का विधानसभा चुनाव रालोद ने फिर सपा के साथ मिलकर लड़ा जिसमें उसे 8 सीटें मिली। सपा के सहयोग से ही रालोद नेता जयंत चौधरी राज्यसभा भेजे गए साथ ही उप चुनाव में भी जीत हासिल किया। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा के सारथी बन गये। इस तरह रालोद करीब 25 साल अपने इतिहास में तीसरी बार भाजपा के साथ जुड़ गए है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही प्रदेश में राम लहर चल रही है। वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने विपक्ष का कोई मजबूत चेहरा नहीं जो विपक्ष को जिता सके। सपा से मिली सात सीटों में एक सीट पर जीतने की गारंटी नहीं है। जबकि भाजपा से मिली दो सीटों में जीतने की गारंटी अधिक दिख रही है। साथ ही चुनाव बाद केन्द्र एवं राज्य सरकार में रालोद की भागीदारी मिल सकती है। वहीं रालोद प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय ने कहा कि फिलहाल तो हम सभी लोग जश्र मना रहे हैं। क्योंकि हमारे नेता चरण सिंह को भारत रत्न मिलने के साथ ही डबल इंजन की सरकार में भागीदारी बढ़ेगी। साथ ही पार्टी अध्यक्ष जयंत चौधरी का जैसा निर्देश मिलेगा वैसा पालन किया जायेगा। फिलहाल पूर्व में चल रही चुनावी तैयारी रोक दी गयी है क्योंकि अब नये सिरे से चुनावी तैयारी करनी होगी।