लखनऊ/संभल। जिस प्रदेश की पहचान इस समय बेहतर कानून व्यवस्था के लिए हो रही है, वहां किसी थाने की पुलिस मानवाधिकारों की परवाह न करती हुई कुछ लोगों से दरिंदगी करे तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। संभल के बनिया ठेर थाने की पुलिस का ऐसा ही चेहरा सामने आया है।
वहां पुलिस ने एक बैटरी की चोरी के आरोप में 7 लोगों को जिस तरीके से यातनाएं दी, वह कूररता की पराकाष्ठा है। सात लोगों को हिरासत में लेकर 4 दिन तक हवालात में रखना और अपराध स्वीकार करने के लिए उन्हें इतना पीटना कि वह मरणासन स्थिति में पहुंच जाए, मानवाधिकारों का सीधी तौर पर उल्लंघन है। पुलिस ने किसी के हाथ पैर के नाखून प्लास से खींचे तो किसी का हाथ पैर तोड़ दिया। इसके बाद मुठभेड़ में मार देने की धमकी देकर मुंह चुप रखने की हिदायत भी दी। किसी का दोष साबित हुए बिना उसे प्रताड़ित करने का अधिकार किसी को नहीं है। यदि ऐसा कोई करता है तो वह मानव अधिकारों केउल्लंघन का दोषी है।
ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। प्रदेश की 25 करोड़ की आबादी में कानून व्यवस्था एक बड़ी चुनौती जरूर है लेकिन राज्य सरकार ने पिछले कुछ सालों में इस दिशा में काफी काम किया है और अपराधियों के हौसले टूटे हैं, लेकिन पुलिस को भी मयार्दा का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। कानून का हथियार उसे अराजक होने की अनुमति नहीं देता। उसके भी कार्य कानून सम्मत ही होनी चाहिए। हर व्यक्ति के कुछ बुनियादी अधिकार हैं और उनकी रक्षा का दायित्व भी पुलिस का ही है। किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने के बाद उसे 24 घंटे के भीतर सक्षम न्यायालय में पेश किए जाने का नियम है।
फिर संभल की पुलिस 7 लोगों को कैसे चार दिनों तक अपनी कैद में रखे रही। निश्चित रूप से इस घटना की जांच ईमानदारी से होनी चाहिए। कुछ पुलिस वालों के अमानवीय कृत्य पूरे महकमें की छवि प्रभावित करते हैं। ऐसी पुलिस वालों को चिन्हित कर उन्हें थानों व चौकिया की जिम्मेदारी से दूर किया जाना चाहिए। ऐसा करके ही संभाल जैसी अमानवीय घटनाओं से बचा जा सकेगा।