नई दिल्ली। ईडी की हर कार्रवाई पारदर्शी, बोर्ड से परे और कार्रवाई में निष्पक्षता के प्राचीन मानकों के अनुरूप होने की उम्मीद है और एजेंसी से अपने आचरण में प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 के तहत जारी समन के जवाब में असहयोग करने के लिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकता है। न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने 32 पेज के विस्तृत फैसले में कहा कि 2002 के अधिनियम की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में एक गवाह का असहयोग उसे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। धारा 19 के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि ईडी की हर कार्रवाई पारदर्शी, बोर्ड से परे और कार्रवाई में निष्पक्षता के प्राचीन मानकों के अनुरूप होने की उम्मीद है और एजेंसी से अपने आचरण में प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं है। 2002 के कड़े अधिनियम के तहत दूरगामी शक्तियों से संपन्न ईडी को अत्यंत ईमानदारी, निष्पक्षता और निष्पक्षता के साथ कार्य करते हुए देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में तथ्य दशार्ते हैं कि ईडी अपने कार्यों का निर्वहन करने में विफल रही है और इन मापदंडों के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश तब आया जब उसने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल्टी समूह एम3एम के निदेशकों बसंत बंसल और पंकज बंसल को जमानत दे दी। पीठ ने मामले को आगे बढ़ाने में ईडी के आचरण पर चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से अपीलकतार्ओं द्वारा पहले ईसीआईआर से संबंधित अंतरिम सुरक्षा प्राप्त करने के तुरंत बाद दूसरा ईसीआईआर दर्ज करना, इसे शक्ति का मनमाना प्रयोग बताया। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 22(1) का हवाला दिया, जो गिरफ्तार व्यक्ति को बिना किसी देरी के गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने के अधिकार की गारंटी देता है। इसमें जोर देकर कहा गया कि इस मौलिक अधिकार का अपने इच्छित उद्देश्य की पूर्ति के लिए सार्थक ढंग से प्रयोग किया जाना चाहिए।