आरोपित अधिकारियों द्वारा ही कराई जा रही सेवानिवृत्त कर्मचारी की शिकायत की जांच
कई सालों से दर-दर भटकने एवं पत्राचार करने पर भी नहीं मिल रहा न्याय
निलेश मिश्र
लखनऊ। जहां एक ओर केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार शिकायत प्रणाली एवं न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं वही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक मामला सामने आया है जिसमें भारतीय संचार निगम लिमिटेड से रिटायर कर्मचारी दिवाकर तिवारी को कई साल भटकने के बाद भी न्याय नहीं मिल पा रहा है, यद्यपि श्री तिवारी ने अपने स्तर से कर्मचारियों एवं मंत्रालय तक पत्राचार कर रखा है। गौरतलब है कि दिवाकर तिवारी 2017 में सेवा से सेवानिवृत्त हो गए थे जिसके पश्चात पुनः कार्यालय नियंत्रक संचार लेखा उत्तर प्रदेश में लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार में सफल होने के बाद 2018 में कंसलटेंट पद पर ज्वाइन किया था।
यह कार्यालय मुख्यालय दूरसंचार विभाग नई दिल्ली के अधीनस्थ है। दिवाकर तिवारी का आरोप है कि उन्हें अक्टूबर 2018 एवं नवंबर 2018 का पारिश्रमिक विलंब से दिया गया इसके अलावा विभागीय नियमों की अनदेखी करते हुए उन्हें पारिश्रमिक भी कम दिया गया, जब श्री तिवारी ने इसका विरोध किया एवं विभागीय नियमों की अनदेखी न करने के लिए पत्राचार किया तो उन्हें बिना किसी आधार के एवं कपोल कल्पित आरोप लगाकर उनकी सेवाओं को जनवरी 2019 में समाप्त कर दिया गया।
दिवाकर तिवारी ने इस संबंध में सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से जानकारी मांगी की उन्हें जिस आधार पर हटाया गया उसका सत्यापन किया जा सके तो जानकारी उपलब्ध नहीं है कह कर टाल दिया गया।
श्री तिवारी ने जिस संबंध में उच्चाधिकारियों को आला अधिकारियों की शिकायत की उसमें संबंधित जांच उन्हीं अधिकारियों को मिल जाती है जिससे वह टालमटोल कर एवं अपने हिसाब से रिपोर्ट लगाकर सारे शिकायत को रफा-दफा कर देते हैं। यहां तक की संचार मंत्री एवं प्रधानमंत्री के पोर्टल पर भी गलत सूचनाएं संबंधित अधिकारियों द्वारा अपलोड कर दी गई जिन से आज तारीख तक शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है एवं पीड़ित को न्याय नहीं मिल पा रहा है। जबकि किसी भी विभाग में शिकायत होने पर आरोपित अधिकारी को ही जांच दिए जाने का नियम नहीं है।
दिवाकर तिवारी लखनऊ के राजाजीपुरम निवासी हैं। उन्होंने फिर से नए सिरे से सरकार एवं मंत्रालय से न्याय की गुहार लगाने का फैसला किया है।