लखनऊ। यह जनादेश मतदाताओं के तात्कालिक संवेग की अभिव्यक्ति नहीं है। यह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश और राज्य स्तर पर भाजपा के संदर्भ में बनी माहौल की परिणति है। देश का माहौल बिल्कुल वैसा नहीं है, जैसा भाजपा विरोधी प्रस्तुत कर रहे थे। मध्य प्रदेश में यदि बीच के 15 महीने की कमलनाथ सरकार को छोड़ दें तू करीब 19 महीने तक शासन करने के बावजूद भाजपा इतनी बड़ी विजय प्राप्त करती है तो फिर सामान्य विश्लेषण से यह परिणाम की सच्चाई नहीं समझी जा सकती। मध्य प्रदेश में भाजपा को करीब 49% और कांग्रेस को 40% मत मिले। 9% बहुत बड़ा अंतर है। राजस्थान में भी लगभग दो प्रतिशत मतों का अंतर है, जबकि पिछली बार कांग्रेस को भाजपा से केवल करीब 0.25 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले थे। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने पिछली बार करीब 33 प्रतिशत और कांग्रेस ने 43% वोट पाया था, जबकि इस बार भाजपा को 45% से अधिक तथा कांग्रेस को लगभग 39% वोट मिला। परंपरागत आधार पर विश्लेषण करने वाले मध्य प्रदेश में कमलनाथ और मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की जाति से लेकर लाडली योजना राजस्थान में पेपर लीक से लेकर भ्रष्टाचार तथा इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी बघेल सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार आदि कारक का उल्लेख कर रहे हैं। हालांकि यह सब विधि मुद्दे थे। शिवराज सिंह भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार नहीं थे। चुनाव में शीर्ष पर प्रधानमंत्री मोदी का नाम था। कांग्रेस की गारंटी योजनाओं के समांतर मोदी ने कहा कि मेरा नाम ही गारंटी है। मुफ्त की घोषणाओं के मामले में मतदाताओं ने मोदी को स्वीकार किया। कांग्रेस ने सभी राज्यों में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की थी। यह सरकारी कर्मचारियों के लिए आकर्षक घोषणा थी। हिमाचल और कर्नाटक चुनाव के परिणाम का एक बड़ा कारण पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा मानी गई थी। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव भी इसके लिए तैयार थे। राजनीति में नेतृत्व मात्रा चेहरा नहीं होता है। वह विचारों और व्यवहार का समुच्चय होता है। जिसके आधार पर मतदाता अपना मत तय करते हैं। नरेंद्र मोदी स्पष्ट विचारधारा को प्रतिबिंबित करते हैं, जिसे केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारे लागू कर रही हैं। राजनीति में भाजपा और राजनीति से बाहर पूरी संगठन परिवार ने हिंदुत्व और उसके इर्द-गिर्द राष्ट्र भाव का धीरे-धीरे सशक्त माहौल बनाया है, जिस देश का सामूहिक मनोविज्ञान बदला है। राजस्थान छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने हिंदुत्व संबंधी घोषणाएं अवश्य की हैं, लेकिन मतदाताओं के सामने स्पष्ट था कि हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्र दिशा पर भाजपा ही कुछ कर सकती है। यह ध्यान रहे कि तमिलनाडु से सनातन विरोधी आक्रामक वक्तव्य के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, बिहार से आइएनडईआइए नेताओं ने हिंदू धर्म की पुस्तकों ?, देवी देवताओं के विरुद्ध जो जहर उगला उसके विरुद्ध केवल भाजपा सामने आई। कांग्रेस ने चुप्पीसाधी रखी। इससे लोगों के मन में संदेह बढा। नई संसद भवन की उद्घाटन का बहिष्कार करके भी विरोधी दलों ने अपना अहित ही किया। भाजपा ने राम मंदिर से लेकर काशी, महाकाल, केदारनाथ, बद्रीनाथ, समान नागरिक संहिता, मजहबी कट्टरवाद एवं आतंकवाद सबको मुख्य मुद्दा बनाया। इससे कांग्रेस को रक्षात्मक होना पड़ा। क्या उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या की घटना जनता कभी भूल पाएगी? हिंदू धर्म संबंधी शोभा यात्राओं पर हमले की शुरूआत राजस्थान से हुई। शोभा यात्राओं पर हमले की कई राज्यों में ज्यादा खतरनाक रूप सामने आए। 2008 में जयपुर में आतंकी हमले के सारे आरोपियों के रिहा होने का भी जनता में प्रतिक्रिया थी। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने सभी सभाओं में इन्हे प्रमुखता से उठाया। हिंदुत्व को नकारात्मक या सांप्रदायिक विचार मानने वाले भारत के बदले हुए माहौल को नहीं समझ सकते। मोदी के नेतृत्व भाजपा ने हिंदुत्व और राष्ट्रबोध को सकारात्मक और व्यावहारिक रूप में उतारने की पहल की है, जिसमें सभी वर्गों के लिए सरकारी नीतियों में जगह है। सामाजिक न्याय तथा दलित पिछड़े और आदिवासियों के कल्याण संबंधी व्यवहारिक अवधारणा को मोदी के नेतृत्व में केंद्र और भाजपा की राज्य सरकारी ने धरातल पर उतारा है। आवास योजना, किसान सम्मन निधि, मुद्रा, उज्ज्वला, बिजली और नल से जल आदि योजनाओं के माध्यम से केंद्र सरकार भी गांव-गांव तक दिखाई देती है। इसमें जातीय जनगणना पर भाजपा कोघेरने की रणनीति सफल नहीं हो सकती, क्योंकि धरातल पर पिछड़ों, दलित और आदिवासियों को सरकार के काम दिखाई देते हैं। पढ़ी-लिखे पिछड़े वर्ग को पता है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मोदी सरकार ने दिया। संसद की विशेष सत्र में महिला आरक्षण के लिए नारी शक्ति बंदन कानून बनाने का भी असर हुआ। अतीत में विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय का मुख्य कारण पार्टी एवं समर्थकों का असंतोष और विद्रोह हो रहा है। इसे देखते हुए भाजपा ने मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को चुनाव की बागडोर ठमाने की जगह केंद्रीय नेताओं को उतार कर पार्टी के अंदरुनी विरोध को लगभग खत्म कर दिया। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी भाजपा ने वहां के नेतृत्व के प्रति असंतोष को खत्म करने का काम किया। यह साफ है कि तेलंगाना में लोक सत्ता बदलना चाहते थे पर भाजपा बीआर एस को हराने वाली सक्षम विकल्प नहीं बन सकती। इसलिए मतदाता कांग्रेस के साथ चले गए। इसके बावजूद भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ा। यदि स्थिति यही रही, जिसकी संभावना भी है तो हम 2024 की आम चुनाव परिणाम का आकलन आसानी से कर सकते हैं।