अमर आनंद वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ की सड़कों पर सरकारी योजनाओं से जोड़ते हुए पिछले हफ्ते मोदी की गारंटी वाले पोस्टर कई जगहों एक साथ नमूदार हुए और रविवार को ये गारंटी जयपुर, भोपाल और रायपुर में जीत के बाद जश्न में बदल गई। मोदी के शुभचिंतकों को भी ऐसी अप्रत्याशित जीत की उम्मीद नहीं थी। वसुंधरा की राजनीतिक उर्वरा ने शिवराज के अंदाज ने और रमन की कोशिशों ने भी अपना काम तो किया है लेकिन दांव पर मोदी का चेहरा ही लगा था जिसे चुनावी सभाओं में वो खुद कहा करते थे कि ये मोदी की गारंटी है। मोदी ने इस जीत के लिए इन राज्यों की जनता को परिवारजन कहते हुए आभार जताया है। इस आभार में जाहिर तौर पर 2024 के लिए साथ देने की उम्मीदें भी छिपी हैं। बीजेपी की 2023 के इस जीत से जहां खड़गे , राहुल, प्रियंका, , गहलोत और कमलनाथ समेत तमाम वियाक्षी नेताओं की आंखें चौंधिया गई हैं वहीं शरद पवार जैसे विरोधी दिग्गज भी इसे अनुमान से परे मान रहे हैं। इस जीत के मायने तमाम हैं। मोदी लहर नहीं बल्कि गारंटी के साथ भारतीय जनमानस के पटल पर विद्यमान हैं। 2024 के लिए उनके चेहरे को लेकर तमाम किंतु – परंतु इस जीत के साथ पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। अब उनके विरोधी, संघ और इससे बढ़कर देश नए सिरे से उनका अक्लम कर रहा है। ये दौर ऐसा कह रहा है कि मोदी का जलवा और शाह का जुनून बरकरार है और इन दोनों का मतलब ही दरअसल बीजेपी है। जहां तक जे पी नड्डा की बात है तो वो मोदी को देवताओं के देवता मानते रहे हैं।
अमित शाह 2023 के बाद अब 2024 की रणनीति बनाएंगे और शुरूआत 80 वाली यूपी से करेंगे। 22 जनवरी को राम मंदिर का शुभारंभ होना है और इस मुद्दे को राष्ट्रीय चुनावी मुद्दा बनाया जाना है। एक तरफ अयोध्या के श्रीराम एयरपोर्ट से विमान के उड़ान भरने की तैयारी की जा रही है तो दूसरी तरफ राज्य के डिप्टी सीएम केशव मौर्य के इरादे भी आसमान छू रहे हैं। जातीय जनगणना के जरिए राज्य की सबसे बड़ी कुर्सी तक पहुंचने का सपना पालने वाले मौर्य मोदी के खास शाह के आशीर्वाद से जल्द से जल्द अपना लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। 2023 में तीन राज्यों में मोदी की जीत से मजबूत हुए शाह यूपी के लिए कमर कसने वाले है। कहा जा रहा है कि शाह योगी को गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कह सकते हैं और इससे उनके प्रिय शिष्य मौर्य के मन की इच्छा भी पूरी हो जाएगी। हालांकि उत्तर प्रदेश के मामले मे भी मोदी के साथ – साथ चेहरे के तौर पर योगी का होना बेहद जरूरी है और योगी के चेहरे की जगह कोई और नहीं ले सकता। शिव की नगरी काशी हो, राम जन्मभूमि हो, कृष्ण जन्मभूमि हो या चुनावी समर हो, मोदी और योगी यूपी में एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं। योगी के साथ शिवराज और वसुंधरा के कद की तरह सिमटाया नहीं जा सकता। यूपी की जनता को शायद ये रास न आए।
बहरहाल 2023 की ये जीत कहती है कि सियासत में कुछ भी नामुमकिन हो सकता है लेकिन अभी मोदी है तो मुमकिन है। देश की राजनीति में गुजरात लॉबी का फिलहाल कोई जोड़ नहीं है और अहमियत पाने के लिए महाराष्ट्र लॉबी को पांच साल में और इंतजार करना पड़ेगा। इसके साथ ही मोदी के बाद पीएम बनने की हसरत पालने वाले अमित शाह को भी, क्योंकि फिलहाल 2024 के लिए भी पीएम का मतलब मोदी ही रहेगा।
ऐसा लग रहा है कि वह सियासी विरोधी नए सिरे से रणनीति बनाएंगे, संघ के पदाधिकारी मोदी को लेकर राय बदलते नजर आएंगे। जो नेता हार की सूरत में खिलाफ बोलना चाहते थे वो फिलहाल चुप रह जाएंगे और 2024 में मोदी ही आएंगे।