लखनऊ। आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक केन्द्र के साथ यूपी में राज करने वाली कांग्रेस की हालत दिनों दिन पतली होती जा रही है। इसका मुख्य कारण आपसी गुटबाजी एवं जनता के बीच नेताओं की दूरी ही रही। इससे सबक लेते हुए कांग्रेस अब नई लीडर शिप के जरिये खोया जनाधार हासिल करने की कोशिश कर रही है। पार्टी को उम्मीद है कि 2024 में सिर्फ दो विचार धारा के बीच मुख्य लड़ाई होगी जिसके जरिये यूपी में कांग्रेस फिर मजबूत होगी। बहरहाल पार्टी ने आज अपने 138 वें स्थापना दिवस पर आम जनता के बीच देश के लिए दान योजना आरंभ किया है। जिसमें कम से कम 138 रूपए तक पार्टी फंड में दान किया जा सकता है।
मालूम हो कि गत 28 दिसम्बर 1985 बंबई में कांग्रेस की स्थापना हुई थी। इसी के साथ ही कांग्रेस यूपी में भी सक्रिय हो गयी। आजादी की लड़ाई में भी यूपी कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। आजादी के बाद यूपी में पहली बार 1951 के विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को 388 सीटें मिली और गोविंद बल्लब पंत पहले मुख्यमंत्री बने। इसके बाद चार दशक यानी 1989 तक डॉ सम्पूर्णा नंद, चंन्द्र भान गुप्ता, सुचिता कृपलानी, चौधरी चरण सिंह, कमलापति त्रिपाठी, टीएन सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा, वी पी सिंह, श्रीपति मिश्रा, नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने। इस बीच कांग्रेस में कई बार टूट हुई पार्टी से निकले नेताओं ने अलग अलग दल बनाये। अंत में वह दूसरे दलों में शामिल हो गए। इसके बाद 1990 में मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने एवं राम मंदिर आंदोलन के साथ ही यूपी में नये क्षत्रपों का उदय हुआ। इसके साथ ही जनता दल, सपा एवं बसपा का जन्म हुआ जिससे कांग्रेस का वोटर इन्हीं दलों में शिफ्ट हो गया। इसके बाद से कांग्रेस ने कई तरह के प्रयोग किये और बीते 34 सालों 17 प्रदेश अध्यक्ष बदले लेकिन कांग्रेस के स्थित यूपी में मजबूत होने के बजाए कम जोर ही होती गयी। इस बीच केन्द्र में कई बार कांग्रेस की सरकार रही लेकिन यूपी के नेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। वहीं पार्टी नेताओं के बीच आपसी गुटबाजी भी बढ़ती गयी। साथ ही आम जनता के बीच दूरी बढऩे लगी जिससे पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा। बीते चार साल से पार्टी की कमान प्रियंका गांधी ने भी संभाली कई तरह के अनोखे प्रयोग किये लेकिन इनका कोई असर नहीं पड़ा। आज हालत यह है कि यूपी विधानसभा में कांग्रेस के केवल दो विधायक ही बचे हैं। विधान परिषद में पार्टी की उपस्थित शून्य हो गयी है। वहीं खोया जनाधार हासिल करने के लिए कांग्रेस अब नई लीडरशिप को तैयार कर रही है। इसके साथ ही जनता से जुड़ी समस्याओं को जानने के लिए कई तरह के कार्यक्रम भी आयोजित कर रही है। जन समस्याओं को लेकर ही पार्टी अपना घोषणा पत्र भी तैयार करने की तैयारी कर रही है। पार्टी की यह भी उम्मीद है कि आगामी लोकसभा चुनाव केवल दो विचारधारा को लेकर होंगे। ऐसे में सपा, बसपा, रालोद सहित कई विपक्षी दल मिलकर कांंग्रेस के साथ चुनाव लड़ेंगे जिससे पार्टी का जनाधार बढ़ सकता है। वहीं मुस्लिम वोटों को लेकर भी पार्टी अलग से रणनीति तैयार करने के लिए मुस्लिम बस्तियों में जन संवाद बढ़ाने जा रही है।
वहीं पार्टी ने यूपी में आम जनता से जुडऩे के लिए यूपी जोड़ो यात्रा आरंभ की है। इस यात्रा का अगला चरण पूवार्चंल और बुदेंलखण्ड में होगा। साथ ही 14 जनवरी से राहुल गांधी भारत न्याय यात्रा आरंभ करने जा रहे हैं। इस यात्रा में भी यूपी में अधिक आकर्षण देने का प्रयास किया जायेगा। साथ ही 138 वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस ने आम जनता से जुडऩे के लिए देश के लिए दान सेवा आरंभ किया है। इसमें कम से कम 138, 1380, 13800 रूपए या इससे अधिक लिया जायेगा। वही कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि पार्टी की एक विचारधारा है और वह सबकों साथ लेकर चलने का प्रयास कर रही है। जातिगत राजनीति से पार्टी का नुकसान हुआ, क्योंकि कांग्रेस ने कभी जातिगत राजनीति नहीं किया। हमारी केन्द्र और यूपी में लंबे समय तक सरकार रही बहुत से कार्य किये गए लेकिन इसका प्रचार प्रसार नहीं हो सका। वहीं पार्टी के नेताओं में आपसी गुटबाजी भी पनपी जिससे जनता ने आहिस्ता आहिस्ता कांग्रेस से दूरी बना ली। लेकिन विगत पांच सालों में पार्टी ने कई शानदार प्रयास किये किंतु अपेक्षा के अनुरूप सफलता नहीं मिल सकी। अब पार्टी नये तरीके से जनता के बीच पकड़ मजबूत करने का कार्य कर रही है। जनता के मुद्दों को लेकर सड़क से सदन तक आंदोलन करने वाली कांग्रेस ही इकलौती पार्टी है।
उन्होंने बताया कि 2024 में दो विचारधारा के बीच मुख्य रूप से लड़ाई होने जा रही है। इससे कांग्रेस को लाभ मिलेगा यूपी में भी हमारा जनाधार मजबूत होगा।